जानिए आयुर्वेद का यह अद्भुत संजीवनी संस्कार
भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में बच्चों के संपूर्ण विकास हेतु कई प्रभावी और नैसर्गिक उपाय बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है सुवर्णप्राशन संस्कार, जिसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, बुद्धि, स्मरण शक्ति और मानसिक विकास बढ़ाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
सुवर्णप्राशन क्या है?
सुवर्णप्राशन (या सुवर्ण बिंदी) एक आयुर्वेदिक इम्युनाइज़ेशन प्रक्रिया है, जिसमें शुद्ध स्वर्ण भस्म को शहद, घृत (औषधीय गाय का घी) और बुद्धिवर्धक औषधियों के साथ मिलाकर शिशु को मुख से दिया जाता है।
यह प्राचीन ग्रंथों में वर्णित 16 संस्कारों में से एक है और इसका वर्णन कश्यप संहिता, अष्टांग हृदय जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलता है।
सुवर्णप्राशन कब और किसे दिया जा सकता है?
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आयु सीमा: यह जन्म से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चों को दिया जा सकता है।
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आरंभ करने का शुभ समय: इसे देने का सर्वश्रेष्ठ समय पुष्य नक्षत्र माना गया है, जो हर माह में एक बार आता है। कुछ चिकित्सक इसे हर दिन भी देने की सलाह देते हैं (विशेषकर 6 माह तक)।
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नवजात शिशु से लेकर किशोर अवस्था तक इसका सेवन लाभकारी होता है।
सुवर्णप्राशन के घटक
सुवर्णप्राशन को आयुर्वेदिक द्रव्यों के संयोजन से बनाया जाता है। इसके प्रमुख घटक हैं:
घटक | लाभ |
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शुद्ध सुवर्ण भस्म | मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाता है, रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि करता है |
गाय का घृत | स्मरण शक्ति और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है |
शहद | औषधियों का वाहक, रोगप्रतिरोधक |
ब्राह्मी, शंखपुष्पी, वचा, जटामांसी | मानसिक विकास, ध्यान और एकाग्रता के लिए सहायक |
गुडूची (गिलोय) | प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करता है |
सुवर्णप्राशन के अद्भुत लाभ
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बुद्धिवर्धक:
बच्चों की स्मरण शक्ति, सीखने की क्षमता और एकाग्रता में वृद्धि करता है। -
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि:
बार-बार सर्दी, खांसी, एलर्जी या संक्रमण से बचाव करता है। -
पाचन शक्ति में सुधार:
भूख में वृद्धि करता है और मल प्रणाली को नियमित करता है। -
मानसिक संतुलन और विकास:
मानसिक तनाव, भय, बेचैनी और चिड़चिड़ेपन को कम करता है। -
शारीरिक विकास और दीर्घायु:
शरीर की समग्र वृद्धि, मांसपेशियों की मजबूती और ऊर्जा स्तर में वृद्धि होती है। -
श्रुतधरता (Photographic Memory):
कश्यप संहिता के अनुसार, यदि शिशु को लगातार 6 माह तक सुवर्णप्राशन दिया जाए, तो वह श्रुतधर बन सकता है — जो कुछ भी सुनता है, उसे तुरंत और लंबे समय तक याद रख सकता है।
कैसे दिया जाए सुवर्णप्राशन?
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मात्रा: बच्चे की आयु, वजन और शारीरिक स्थिति के अनुसार मात्रा आयुर्वेदाचार्य निर्धारित करते हैं।
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प्रक्रिया: इसे स्वच्छता और ध्यानपूर्वक शिशु की जीभ पर डाला जाता है।
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अवधि:
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नवजात से 6 माह तक: प्रतिदिन दिया जा सकता है।
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उसके बाद: हर महीने पुष्य नक्षत्र पर या चिकित्सक की सलाह से।
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क्या कोई साइड इफेक्ट है?
सुवर्णप्राशन पूर्णतः आयुर्वेदिक और प्राकृतिक औषधियों से बनाया जाता है, यदि यह प्रशिक्षित आयुर्वेदाचार्य के निर्देशन में दिया जाए तो इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते।
हालांकि, यदि शहद या किसी औषधि से एलर्जी हो तो पहले चिकित्सक से सलाह जरूर लें।
निष्कर्ष
सुवर्णप्राशन केवल एक आयुर्वेदिक औषधि नहीं, बल्कि एक संस्कार है जो शिशु के संपूर्ण मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक विकास की आधारशिला रखता है। यह आधुनिक जीवनशैली से उपजे स्वास्थ्य खतरों से बचाने में सहायक होता है।
यदि आप अपने शिशु को एक स्वस्थ, बुद्धिमान और रोगमुक्त जीवन देना चाहते हैं, तो सुवर्णप्राशन को अपनाना एक श्रेष्ठ विकल्प हो सकता है — बशर्ते इसे योग्य वैद्य की देखरेख में किया जाए।
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