Friday, 17 January 2025

Ovarian cysts - अंडाशय में सिस्ट और उनकी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव

 Ovarian cysts - अंडाशय में सिस्ट और उनकी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव

आज के समय में, प्रजनन क्षमता से जुड़ी समस्याएं महिलाओं में तेजी से बढ़ रही हैं। इनमें से एक प्रमुख समस्या है अंडाशय में सिस्ट (Ovarian Cysts)। अंडाशय में सिस्ट क्या होते हैं, ये क्यों बनते हैं, और प्रजनन क्षमता पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है, इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे।

अंडाशय में सिस्ट क्या हैं?

अंडाशय में सिस्ट तरल पदार्थ से भरी हुई छोटी थैली होती है, जो किसी भी उम्र में महिलाओं के अंडाशय में बन सकती है। यह सिस्ट सामान्यत: हानिरहित होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में ये समस्या का कारण बन सकते हैं।

अंडाशय में सिस्ट के प्रकार

  1. फॉलिकुलर सिस्ट (Follicular Cysts): जब अंडाशय से अंडाणु निकलने की प्रक्रिया में बाधा आती है, तो यह सिस्ट बनता है।
  2. कॉर्पस ल्युटियम सिस्ट (Corpus Luteum Cysts): अंडाणु निकलने के बाद का हिस्सा, जिसे कॉर्पस ल्युटियम कहते हैं, सिस्ट में बदल सकता है।
  3. पीसीओएस (PCOS - Polycystic Ovary Syndrome): यह स्थिति तब होती है जब अंडाशय में कई सिस्ट बनते हैं। यह प्रजनन क्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
  4. एंडोमेट्रियोमा (Endometrioma): एंडोमेट्रियोसिस के कारण बनने वाले सिस्ट।

अंडाशय में सिस्ट के लक्षण

  • मासिक धर्म में अनियमितता
  • पेट के निचले हिस्से में दर्द
  • वजन बढ़ना
  • थकान और कमजोरी
  • गर्भधारण में कठिनाई

अंडाशय में सिस्ट और प्रजनन क्षमता

अंडाशय में सिस्ट प्रजनन क्षमता को विभिन्न तरीकों से प्रभावित कर सकते हैं:

  1. अंडाणु निर्माण में रुकावट: फॉलिकुलर सिस्ट के कारण अंडाणु का निर्माण सही तरीके से नहीं हो पाता।
  2. हार्मोनल असंतुलन: पीसीओएस के कारण हार्मोनल असंतुलन हो सकता है, जो गर्भधारण में बाधा डालता है।
  3. अंडाशय को नुकसान: बड़े सिस्ट अंडाशय की संरचना को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद में अंडाशय में सिस्ट को "आर्तव दोष" के अंतर्गत देखा जाता है। निम्नलिखित उपाय मदद कर सकते हैं:

  • वमन पंचकर्म
  • बस्ती पंचकर्म
  • रक्तमोक्षण चिकित्सा
  • लेप चिकित्सा
  • उत्तर बस्ती: यह एक विशेष पंचकर्म उपचार है, जो प्रजनन अंगों की सेहत को सुधारने में सहायक है।
  • औषधि: अशोक, लोध्र, शतावरी, और गुग्गुल जैसी जड़ी-बूटियां प्रभावी होती हैं।
  • आहार: हल्का, पौष्टिक और वात-पित्त दोष को संतुलित करने वाला आहार लें।
  • योग और ध्यान: नियमित योग और प्राणायाम हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।


कब डॉक्टर से संपर्क करें?

यदि आपको निम्नलिखित लक्षण दिखते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें:

  • लगातार पेट में तेज दर्द
  • मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्राव
  • गर्भधारण में बार-बार असफलता

आयुभूषण आयुर्वेद की भूमिका

हमारे आयुभूषण आयुर्वेदिक फर्टिलिटी सेंटर में अंडाशय में सिस्ट से जुड़ी समस्याओं के लिए व्यक्तिगत उपचार योजना तैयार की जाती है। हम पंचकर्म, जड़ी-बूटियों और आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर प्राकृतिक रूप से आपकी प्रजनन क्षमता को सुधारने का प्रयास करते हैं।

निष्कर्ष

अंडाशय में सिस्ट गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन सही उपचार और जीवनशैली में बदलाव से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यदि आप या आपके किसी परिचित को इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो आज ही हमारे विशेषज्ञों से संपर्क करें।

(इलाज के लिए डॉक्टर से परामर्श करें।)





 डॉ. भूषण काळे                                                                                 डॉ .स्मिता काळे 

  एम एस (प्रसूती व स्त्री रोग )                                                                  एम डी (पंचकर्म ) केरळ

                       आयुभूषण आयुर्वेदिक वंध्यत्व निवारण आणि केरळीय पंचकर्म चिकित्सालय

                             (वंध्यत्व, स्त्रीरोग, गर्भसंस्कार, सुवर्णप्राशन, केरळीय पंचकर्म)

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Wednesday, 15 January 2025

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया: अंडोत्सर्जन में बाधा डालने वाले अधिक प्रोलैक्टिन स्तर

 हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया क्या है?


हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है। प्रोलैक्टिन हार्मोन मुख्य रूप से स्तनपान के दौरान दूध उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, लेकिन इसके अधिक स्तर होने से महिलाओं में मासिक धर्म (महावारी) चक्र  और अंडोत्सर्जन (ओवुलेशन) में समस्या हो सकती है।

प्रोलैक्टिन के उच्च स्तर के कारण

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर (प्रोलैक्टिनोमा): यह प्रोलैक्टिन उत्पादन को नियंत्रित करने में असमर्थ बनाता है।
  2. दवाइयों का प्रभाव: कुछ दवाइयाँ, जैसे एंटी-डिप्रेसेंट और हाई ब्लड प्रेशर की दवाइयाँ, प्रोलैक्टिन स्तर को बढ़ा सकती हैं।
  3. थायरॉइड की समस्याएं: हाइपोथायरॉइडिज्म भी प्रोलैक्टिन के स्तर को बढ़ा सकता है।
  4. तनाव और शारीरिक थकावट: अधिक मानसिक और शारीरिक तनाव से भी प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ सकता है।

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के लक्षण


इस स्थिति के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • मासिक धर्म चक्र में अनियमितता
  • बांझपन (इनफर्टिलिटी)
  • स्तनों से दूध का असामान्य रिसाव (गैर-गर्भवती और स्तनपान न कराने वाली महिलाओं में)
  • सिरदर्द और दृष्टि समस्याएं (यदि पिट्यूटरी ट्यूमर हो)
  • सेक्स ड्राइव में कमी

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया और अंडोत्सर्जन


प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। यह हार्मोनल असंतुलन पैदा करता है, जिससे अंडोत्सर्जन की प्रक्रिया बाधित होती है। ओवुलेशन में रुकावट के कारण महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है।

उपचार और प्रबंधन

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया का उपचार इसके कारणों पर निर्भर करता है। कुछ सामान्य उपचार विधियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. दवाइयों द्वारा उपचार: दवाइयाँ प्रोलैक्टिन स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं।
  2. सर्जरी: यदि प्रोलैक्टिनोमा दवाओं से नियंत्रित नहीं होता, तो सर्जरी का विकल्प चुना जा सकता है।
  3. लाइफस्टाइल में बदलाव: तनाव प्रबंधन, नियमित व्यायाम, और संतुलित आहार से भी प्रोलैक्टिन स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  4. आयुर्वेदिक उपचार: अश्वगंधा, शतावरी, और त्रिफला जैसी जड़ी-बूटियाँ हॉर्मोनल संतुलन बनाने में सहायक हो सकती हैं।

निवारण के उपाय

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच करवाएं।
  • तनाव को कम करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करें।
  • थायरॉइड और अन्य हार्मोनल समस्याओं का समय पर इलाज करवाएं।

निष्कर्ष

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया एक गंभीर स्थिति हो सकती है, लेकिन सही समय पर पहचान और उपचार से इसे प्रभावी रूप से प्रबंधित किया जा सकता है। महिलाओं को अपने मासिक धर्म चक्र और प्रजनन स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए और किसी भी असामान्य लक्षण पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

(इलाज के लिए डॉक्टर से परामर्श करें।)




 डॉ. भूषण काळे                                                                                 डॉ .स्मिता काळे 

  एम एस (प्रसूती व स्त्री रोग )                                                                  एम डी (पंचकर्म ) केरळ

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Tuesday, 14 January 2025

POI क्या है?

 POI क्या है?


POI एक ऐसी अवस्था है जिसमें अंडाशय पर्याप्त मात्रा में एस्ट्रोजन का उत्पादन नहीं कर पातीं, जिससे मासिक धर्म अनियमित हो जाता है या पूरी तरह बंद हो जाता है। यह समस्या हार्मोनल असंतुलन और अंडोत्सर्जन की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती है।


POI के लक्षण:



POI के लक्षण PCOS से कुछ मिलते-जुलते हो सकते हैं, लेकिन इसमें विशिष्ट लक्षण शामिल हैं:
  1. अनियमित या अनुपस्थित मासिक धर्म
  2. गर्म फ्लैश और रात में पसीना
  3. योनि में सूखापन
  4. मूड स्विंग्स और अवसाद
  5. थकान और ऊर्जा की कमी
  6. गर्भधारण में कठिनाई

POI के कारण:

POI के संभावित कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • जेनेटिक कारक: X क्रोमोसोम की असामान्यताएं।
  • ऑटोइम्यून डिसऑर्डर: शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अंडाशय पर हमला करती है।
  • कैंसर उपचार: कीमोथेरपी या रेडिएशन थेरेपी से अंडाशय को नुकसान हो सकता है।
  • पर्यावरणीय कारक: विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना।

POI का उपचार:

POI का स्थायी इलाज संभव नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को प्रबंधित किया जा सकता है।
  1. हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT): शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की कमी को पूरा करना।
  2. फर्टिलिटी उपचार: गर्भधारण के लिए IVF या डोनर एग का उपयोग।
  3. आहार और जीवनशैली में सुधार:
    • हड्डियों को मजबूत रखने के लिए कैल्शियम और विटामिन D युक्त आहार लें।
    • नियमित व्यायाम और तनाव प्रबंधन।

निष्कर्ष:

POI महिलाओं की प्रजनन क्षमता और संपूर्ण स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। समय पर निदान और सही उपचार से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। स्वस्थ जीवनशैली और डॉक्टर की सलाह का पालन करना POI से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है।


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डॉ. भूषण काळे                                                                                 डॉ .स्मिता काळे 

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PCOD… एक अपूर्ण प्रकल्प

 PCOD… एक अपूर्ण प्रकल्प

स्त्रीची प्रजनन संस्था ही खूप गुंतागुंतीने काम करणारी व्यवस्था आहे. याला एका मल्टिनॅशनल कंपनीशी तुलना करता येईल, जिथे प्रत्येक विभाग आपापले कार्य सुरळीत पार पाडतो.

या कंपनीचा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर म्हणजे मेंदूचा हायपोथॅलॅमस विभाग. हा विभाग आपल्या सीईओ म्हणजेच पिट्युटरी ग्रंथीच्या माध्यमातून ओव्हरी या कार्यालयाचे काम चालवतो.




पिट्युटरी ग्रंथी दर महिन्याला ओव्हरीला एक ओव्हम तयार करण्याचे आदेश देते. महिन्याच्या सुरुवातीला एफएसएच (FSH) या प्रोजेक्ट मॅनेजरला ओव्हरी ऑफिसमध्ये पाठवले जाते.

ओव्हरीतील प्रक्रिया


ओव्हरीमध्ये असणारी हजारो ओसाइट्स (Oocytes) म्हणजे या कंपनीचे इंटर्न्स, काम शिकण्यासाठी प्रयत्न करतात. एफएसएच या मॅनेजरच्या मदतीने यापैकी 20 ओसाइट्स विकसित होतात. त्यातला एक ओसाइट योग्य प्रशिक्षण घेऊन एलएच (LH) या दुसऱ्या प्रोजेक्ट मॅनेजरच्या मार्गदर्शनाखाली ओव्हम म्हणून ओव्हरीतून बाहेर येतो.
यानंतर ओव्हम गर्भाशयात जाऊन पुरुष बीजाची (स्पर्म) वाट पाहतो. जर बीजाशी यशस्वी संयोग झाला तर गर्भधारणा होते; अन्यथा महिन्याच्या शेवटी ओव्हम शरीरातून बाहेर टाकला जातो.

PCOD कसे होते?



सध्याच्या बदललेल्या जीवनशैलीमुळे, जसे की वजन वाढणे, चुकीच्या आहारपद्धती, मानसिक ताण आणि व्यायामाचा अभाव, प्रजनन संस्थेचा हा प्रकल्प वारंवार फसतो. परिणामी, ओव्हम ओव्हरीच्या बाहेर पडत नाही. महिनेच्या महिन्यांपर्यंत ओव्हम ओव्हरीमध्येच अडकून राहतो आणि ओव्हरी द्राक्षाच्या घडासारखी दिसू लागते. यालाच PCOD (Polycystic Ovarian Disease) असे म्हणतात.


PCOD ची लक्षणे



1. मासिक पाळी अनियमित किंवा कमी होणे.

2. चेहऱ्यावर अनावश्यक लव वाढणे.

3. केस गळणे.

4. पिंपल्स वाढणे.

5. वजन वाढणे.

6. वंध्यत्वाचा त्रास.

PCOD होण्याची कारणे



· अधिक बैठे काम व व्यायामाचा अभाव.

        · अति स्निग्ध व गुरू पदार्थांचा (पिझ्झा, बटर, पनीर, लस्सी, मांसाहार) अतिवापर.

· लवकर वयात कामोत्तेजक गोष्टींचा अति संपर्क (स्पर्श, दृश्य किंवा श्राव्य माध्यमातून).

· पाळी पुढे-मागे करण्यासाठी घेतल्या जाणाऱ्या हार्मोनल गोळ्या.

· अति रुक्ष आहार, जसे की डाएटच्या नावाखाली उपाशी राहणे.

· मानसिक ताण आणि चिंता.

या सर्व कारणांमुळे मेंदूतील हार्मोन्सचे संतुलन बिघडते, ज्याचा परिणाम दर महिन्याला ओव्हरीतून बाहेर पडणाऱ्या ओव्हमवर होतो. हा अडथळा सातत्याने होत राहिल्यास PCOD निर्माण होतो.


आयुर्वेदाद्वारे PCOD उपचार

PCOD हा आयुर्वेदाने पूर्णपणे बरा होणारा विकार आहे. परंतु, यासाठी खालील उपचारांची अंमलबजावणी आवश्यक आहे:

1. पंचकर्म:

वमन  बस्ती अशा पंचकर्म प्रक्रियेद्वारे शरीरशुद्धी केली जाते.

यानंतर औषधोपचार करून PCOD पूर्णपणे बरा केला जातो.

2. आहार:

रुग्णाला योग्य आहारसंबंधी मार्गदर्शन केले जाते. काही विशिष्ट पदार्थांचा योग्य वापर करण्यास सांगितले जाते.

3. योगासने:

पवनमुक्तासन, शलभासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, चक्कीचालनासन, तितलीआसन, पश्चिमोत्तानासन यांसारखी आसने नियमित केल्यास PCOD पुन्हा होण्याची शक्यता कमी होते.


निष्कर्ष

PCOD झालेल्या स्त्रियांच्या ओव्हम ट्रेनिंगचा प्रकल्प आयुर्वेदाने सुरळीत पार पाडता येतो. परंतु, यासाठी नियमित पथ्य, पंचकर्म आणि औषधोपचार यांचे पालन करणे गरजेचे आहे. आयुर्वेदातील योग्य उपचार पद्धतीने PCOD पूर्णपणे बरा करता येतो आणि महिलांचे प्रजनन आरोग्य सुधारता येते.



 डॉ. भूषण काळे                                                                                 डॉ .स्मिता काळे 

  एम एस (प्रसूती व स्त्री रोग )                                                                  एम डी (पंचकर्म ) केरळ

                       आयुभूषण आयुर्वेदिक वंध्यत्व निवारण आणि केरळीय पंचकर्म चिकित्सालय

                             (वंध्यत्व, स्त्रीरोग, गर्भसंस्कार, सुवर्णप्राशन, केरळीय पंचकर्म)

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